देश के पहला जीन बैंक, जन्म से पहले ही पता चल जाएगी बच्चे की बीमारी

देश के पहला जीन बैंक, जन्म से पहले ही पता चल जाएगी बच्चे की बीमारी

सेहतराग टीम

कुछ साल पहले तीन महीने की एक गर्भवती महिला केरल के एक मेडिकल कॉलेज पहुंची। उनकी 6 साल की बच्ची को एक दुर्लभ बीमारी थी। महिला को पता लगाना था कि कहीं उनके होने वाले बच्चे को तो भी इस बीमारी से जूझना नहीं पड़ेगा। महिला इंस्टिट्यूट ऑफ जिनोमिक्स ऐंड इंटिग्रेटिव बायॉलजी में डॉ. गीता गोविंदराजा से मिली। महिला के कुछ सैंपल हैदराबाद के संस्थान में भेजे गए। टेस्ट में पता चला कि जन्म लेने वाले बच्चे को ऐसी कोई बीमारी नहीं है। डॉ. गीता ने बताया, ‘महिला ने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। हम लोगों की जिंदगी में बदलाव ला सकते हैं। इसके पीछे कारण हैं हमारे जिनोम।’

दुर्लभ जेनेटिक बीमारियों से जूझ रहे हैं 7 करोड़ भारतीय-

काउंसिल ऑफ साइंटिफिक ऐंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) के डायरेक्टर जनरल शेखर कहते हैं कि करीब 7 करोड़ भारतीय दुर्लभ जेनेटिक बीमारियों से जूझ रहे हैं। इनमें से कई लोगों को पता ही नहीं है कि उन्हें कोई बीमारी है। इस वजह से इलाज भी नहीं करवा पाते। इसके अलावा एक परेशानी यह है कि भारत में जेनेटिक डेटा की कमी है। वह कहते हैं, ‘भारतीयों के जीन की कोई विश्वसनीय जानकारी रिसर्च के लिए हमारे पास नहीं है।’हालांकि अब देश के कई संस्थान इस दिशा में काम कर रहे हैं। भविष्य में जीन की जानकारी से दुर्लभ जेनेटिक बीमारियों के इलाज में मदद मिलेगी।

आखिर जिनोम है क्या?-

जिनोम किसी व्यक्ति के डीएनए का एक पूरा सेट होता है। जिनोम में सभी जींस के सेट और करीब 300 करोड़ डीएनए होते हैं। इनकी मदद से शोधकर्ता जीन की कार्यप्रणाली को आसानी से समझ सकते हैं। इससे कैंसर और दूसरी बीमारियों की वजह भी सामने आ पाएंगी। जीन डेटा को अति सुरक्षित सुपर कंप्यूटर में रखा जाएगा। किसी व्यक्ति की आनुवांशिक जानकारी से कोई समझौता नहीं होगा। इस डेटा का विश्लेषण करना सबसे मुश्किल काम है। एक जिनोम में करीब 120 जीबी डेटा होता है। CSIR के डीजी कहते हैं, ‘संस्थान ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसकी ट्रेनिंग देने की योजना बना रहा है ताकि जिनोम डेटा पर काम किया जा सके।’

भारत का अपना जीन प्रॉजेक्ट-

जीन रिसर्च में आने वाली परेशानियों को अब दूर किया जा रहा है। भारत ने जीन मैपिंग पर छह महीने से चल रहे प्रॉजेक्ट को हाल में खत्म किया है। इस प्रोजेक्ट का नाम है- IndiGen। इस प्रॉजेक्ट के तहत करीब 1,008 लोगों के जिनोम की मैपिंग की जा रही है। इससे मेडिकल साइंस के विशेषज्ञों को कैंसर और दूसरी जेनेटिक बीमारियों के इलाज में मदद मिलेगी। गर्भ में पल रहे शिशु को भी क्या बीमारी हो सकती है इसकी भी पहचान की जा सकेगी। इस प्रॉजेक्ट के प्रमुख श्रीधर शिवासुब्बु कहते हैं, ‘इस मैपिंग से पैरंट्स को बच्चे में होने वाली दुर्लभ बीमारियों का पता चल पाएगा। हमें यह जानने में मदद मिलेगी कि क्यों कुछ लोगों में किसी दवाई को लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं होती। हर व्यक्ति को जरूरत के मुताबिक इलाज मुहैया कराया जा सकेगा।'

(साभार- नवभारत टाइम्स)

 

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